बेटी
$ बेटी का आँगन $
एक सफर,
जिसकी शुरुआत होने को है।
अग्नि को साक्षी मानकर,
सात फेरों से होते हुये…
सात जन्मों का बंधन।
हर फेरे में,
साथ जीने की कसमें।
एक दूसरे के साथ..रहने का वादा,
और उसमें डूबा हुआ…प्रणय निवेदन।
एक दूजे के हर पल में शामिल,
हर कदम साथ चलने को आतुर,
और एक अटूट विश्वास,
कभी भी अलग न होने की खातिर।
ढेरों यादों को बनाने,
और उनको सहेजने के लिये…..
हर लम्हे में अपनों की यादें,
और पीछे छूटता वो बचपन…
सखी-संगियों की याद,
और आंसुओं में भीगा,
बाबुल के आँगन का हर कोना।
जहाँ बीता बचपन..भाई बहन के साथ।
वो माँ की लोरी की गूँज..जो बजती है…
अब भी कानों में।
सब कुछ तो पीछे छोड़कर..जाना है।
एक नये युग की शुरुआत में,
अपनों की छाँव और उनका आशीर्वाद
सदा रहे मेरे साथ..
बस बचपन का सफर पूरा हुआ।
अब नयी बगिया में जाना है,
नये घर को सजाना है।
बस भूल न जाना इस बगिया के फूल को..
आप सब रहना मेरी छाया और विश्वास बनकर।
एक नये युग की तलाश में,
भविष्य की बाहों में,
जाने को उत्सुक…
और इसी उत्सुकता में।
जीवंत होता जाता मेरा प्यार…
:-: श्रवण सागर :-: