बेटी
बेटा होता घर का लाडला
तो बेटी लाडली होती है।
बेटा मानो फूल है घर का
तो खुशबू बेटी होती है।
उछल कूद गर बेटा करता
वह चिड़िया सी चीं चीं करती है
घर बाहर वह शोर मचाती
सबके मन को हरती है।
बेटा गर कुल दीपक होता
तो बेटी ज्योति होती है।
ज्योति गऱ कहीं साथ छोड़ दे
तो दीपक बाती काली होती है।
माता-पिता पर संकट छाए
एक मुस्कान से खुश कर देती है।
और भाई पर विपदा आ जाए
बड़े प्यार से वो हर लेती है।
बेटा एक कुल रीत निभाये
तो बेटी दो कुल ढोती है।
इतने पर भी ताना खाए
और मन ही मन वह रोती है।
प्रशांत शर्मा “सरल”
नरसिंहपुर