बेटी
हर दर्द को सहती है
खुश फिर भी वो रहती है
बेटी क्या है लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |
बेटी जन्मती एक घर में
पनपती एक घर में
प्रश्नचिन्ह सी …कभी स्वप्न सी
कभी राह सी.. गुमराह सी
लहर पवन सी बहती है
बेटी क्या लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |
खेलती इस आंगन में
ममता के दामन में
सीख वो सबक की
बात वो जनक की
सोचती और समझती है
बेटी क्या है लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |
समय की रफ्तार में
लाड़ और प्यार में
अपनो के संसार में जीत और हार में
पलती पनपती बेटी… वो बेटी
किसी और की हो जाती है
बेटी क्या है लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |
संसार वो नया सा
कहा अनकहा सा
जानें अंजाने लोग
माने अनमाने लोग
उस माहौल में ढल जाती है
बेटी क्या है लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |
कितने रिश्ते कितने नाते
आते जाते चलते जाते
बेटी खुद थी ममता पाती
पतिव्रता वो बहू भी बनती
फिर मां वो कहलाती है
बेटी क्या है लड़की क्या है
खुद को खुद से कहती है |