बेटी
हर रोज जो संस्कारों का घूंट है, पीती क्या उसी का नाम है बेटीl सागर की तरह है वो गहरी, ना जाने कितने दुख तकलीफ है हर रोज सहती फिर भी चेहरे पर ना शिकन लाती ।
जो सड़कों पर चलते वक्त निगाहें नीचे किए रहती ,
जो मनचलो को देखकर है सहम जाती,
जो कहा पलट कर तो बेशर्म कहलाई जाती,
जो कोने में खडी रोती
क्या उसी का नाम है बेटी l
अकेले बाहर जाने पर बंदिशे से जिसको लगाई जाती ,
जो एक घर से दूसरे घर पहुंचाई जाती,
पर किसी घर की वह ना कहलाई जाती,
शादी के नाम पर जो पराई कर दी जाती ,
हर रोज आवाज जिसकी दबाई जाती ,
क्या उसी का नाम है बेटी।
हर रोज जिसके अधिकारों की बात की जाती पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलती है वह लड़का लड़की सामान बात यह चारों ओर फैलाई है जाती फिर उसी के यौन शोषण की खबर हर रोज अखबार में पाई जाती,
क्या उसी का नाम है बेटी। सारा त्याग समर्पण सब उसी के लिए, घर की सारी फिक्र जिसको रहती है जिसके जन्म के लिए, अभियान चलाए जाते फिर भी सारी रीत उसी के लिए बनाई एक घर की नही दो की घर शान बतलाई जाती ,
क्या उसी का नाम है बेटी।
क्या उसी का नाम है बेटी।