बेटी बचाओ
बेटी बचाओ”
अधखिली कली गर्भ में कहे दो वचन माँ-पापा
स्नेह से अभिसिंचित कर बगिया का फूल बनाओेगे।
नयनों की ज्योति बनकर मैं दीप द्वार सजाऊँगी
शक्ति स्वरूपा बेटी खोकर किसको लाड़ लड़ाओगे?
बेटी से आधार जगत का बेटी से सब रिश्ते हैं
बेटी बिन जग सूना है कब तक ये झुठलाओगे?
बेटी आँगन की लतिका बन हर्षाती सब व्यथा हरे
मातु-पिता की दुआ है बेटी बिन बेटी के क्या पाओगे?
सुख-दु:ख का सेतु बन बेटी भाई माथे तिलक करे
बेटी नहीं बचाओगे तो निज कुल का मान घटाओगे।
भ्रूण हत्या न जग में होगी छू माटी संकल्प करो
पढ़ा-लिखा हर कन्या को तुम कुल की शान बढ़ाओगे।
बेटी तो आधार जगत का घर-आँगन की खुशहाली
भारत की ये गौरव गाथा इसको गले लगाओगे।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी।