बेटी को समर्पित
हर बेटी को समर्पित
कैसे कहूँ कि,बेहतर है,मस्जिद,,
कैसे कहूँ कि,पावन है,मन्दिर,,
जब नन्ही,मासूम कलियों,को ही,,
शैतान,हैवान रौंद,रहे इनके अंदर,,
कोई क्या सुनेगा दुआ मन्नत मेरी,,
कोई वंदना कोई आरती मेरी सुंदर,,
इससे तो अच्छा है,मैं अकेला ही रहलू,,
जब बनाता नही मुझको इंसान मन्दिर,,
ये भीड़ की दुनियां है किस काम की,,
जब मनुज ही नही मनु इनके अंदर,,
मानक लाल मनु