बेटी को दो तालीम
बेटी को दो तालीम
घर खुशियों भरा हो जायेगा
पानी जड़ में डाल दो
पत्ता हरा हो जायेगा
चाल ग़र समझो सियासत की
तो अच्छी बात है
वर्ना फिर बंदर के हाथों
उस्तरा हो जायेगा
सोचता हूँ बेच दूँ मैं भी
ज़मीर अपना यहीं
कम से कम इस पेट को तो
आसरा हो जायेगा
ज़र,ज़मीं,जोरू,अहम
अपमान-मान के जाल में
उलझा रहा ताज़िन्दगी
तो अधमरा हो जायेगा
बेचकर बाज़ार में ग़म
पाओगे न फायदा
आँसुओं को खरीद लो
सौदा खरा हो जायेगा