बेटी की व्यथा
“बेटी की व्यथा ”
“””””””””””””””””””””
माँ !
तेरी इन बाहों में…….
तेरी स्नेहिल निगाहों में ,
तेरे आँचल की पनाहों में ,
एक बार तो ! ले ले तू मुझको !
मत मार मुझे , यूँ कोंख में !
मैं तेरी ही परछाई हूँ …..
पोषित होता है !
भैया जहाँ ,
मैं उसी कोंख से आई हूँ |
क्यों मुझको ?
तू पत्थर समझे !
और भैया को तारणहार !
मुझे देखकर
तू कतराती !
भाई को देती स्नेह अपार ||
मैं भी नारी !
तू भी नारी !
फिर मुझसे , क्यों भेदभाव ?
एकबार तू दिल से अपना ले ,
मैं दूर करूँ तेरे अभाव ||
व्यथित मन है !
दिल व्याकुल है !
और मंदित मेरी धड़कन !
“दीप” के जैसी !
प्रज्वलित ज्योति ,
कुछ शेष बची मेरे मन में !
शायद मेरी बात समझकर ,
तू मुझे बसाए , तन-मन में ||
“”””””””””””””””””””””””””””””””””
(डॉ०प्रदीप कुमार “दीप”)
“”””””””””””””””””””””””””””””””””