बेटी की ब्याह की चिंता
शायद तभी डरते हैं माता-पिता,
बेटी का ब्याह रचाने से,
दहेज लोभिओं के आ जाने से,
बेटी के ब्याह के पश्चात सताने पर,
हर पल दरिंदे वहशी के ऊंँगली उठाने पर,
रूह कंपित हो जाती उन बेटियों के माता-पिता की,
लटकती हुई लाश दिखाई जाती है,
आत्महत्या किए जाने के बहाने से,
तार-तार करते हैं इज्जत ,
बेटी के ससुराल चले जाने पर,
कितने गहरे जख्म है मिलते,
जिनको पाला इन्हीं नाजुक हाथों से,
कैसे न भयभीत हो शादी करने से ,
हालत समाज के दर्शाते हैं,
शायद इसलिए डर-भय और सिर झुका कर भी,
बेटी के सुख-दुख में आगे आकर ,
चिंता करते हैं ब्याह रचा कर,
बेटी है अनमोल जिनकी फिर भी ,
मोल किस बात की चुकाते हैं ,
बेटी का ब्याह रचाने को ,
दर-दर की ठोकरें भी खाते हैं ,
खुशियों की अवसर में ,
आंँसू बहा कर ही विदा करते हैं ।
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बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।