बेटी की अभिलाषा
पढ़-लिखकर कुछ करना चाहूं
भेदभाव का खंडहर ढाहूं
खुले आसमां के नीचे
मैं भी खुला उड़ना चाहूं
बंदिशें न हो कोई
जो चाहूं, कर लूं वही
क्या बेटी होना पाप है?
यह कैसा अभिशाप हैl
अकेले बाहर जाना नहीं
कॉलेज से देर कभी आना नहीं
यदाकदा कभी देर होने से
चिंतित होता परिवार हैl
यही बेटी का अधिकार हैl
भरोसा रखो मां पापा
भरोसे पर खरी उतर जाऊंगी
मेहनत करके इस जहां में
आपका नाम रौशन कर पाऊंगी
स्वावलंबी बनकर अपने,
पैरों पर खड़ा रहना चाहती हूंl
बेटी हूं कुछ और नहीं,
बस इतना ही कहना चाहती हूंl
रीता यादव