बेटी – मुक्तक
????
बेटी किस कसूर, किस अपराध की सजा पाती है।
कभी गर्भ, कभी दहेज के नाम मारी जाती है।
घर-बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं है बेटियाँ –
दुष्ट-दरिंदों-गिद्ध की निगाहें यहां रुलाती है।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺
????
बेटी किस कसूर, किस अपराध की सजा पाती है।
कभी गर्भ, कभी दहेज के नाम मारी जाती है।
घर-बाहर कहीं भी सुरक्षित नहीं है बेटियाँ –
दुष्ट-दरिंदों-गिद्ध की निगाहें यहां रुलाती है।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺