*बेटी का संदेश*
जब धरा न होगी दुनिया में,
अंकुर कहाँ उग पाएगा!
जब बेटी ही न होगी जग में,
तो बेटा कहाँ से आएगा!!
जब दिनकर ही न उग पाया,
तो दिवस कहाँ हो पाएगा!
मत मार मुझे गर्भ आशय में,
नर मानव न कहलाएगा!!
इक बार मुझे बस आने दे,
नव-जीवन पौधा लहराने दे!
फिर देख तेरी बगिया बाबुल,
तू हरी-भरी ही पाएगा!!
खुशहाल रहे आँगन तेरा,
खुशियों से भरूँ दामन तेरा!
तू मालामाल हो जाएगा,
खुशियाँ समेट नहीं पाएगा!!
तेरी हर इच्छा का ध्यान धरूँ,
बेटे से बढ़कर प्यार करूँ!
जब चौथेपन लड़खड़ाएगा,
मुझे ‘मयंक’ रूप में पाएगा!!
रचयिता : श्री के.आर.परमाल ‘मयंक’