बेटी का संघर्ष
गंगाजल सी पावन बेटी वसुधा पे आने को आतुर, खड़े किनारे लोभी लम्पट व्याधि ग्रस्त जो है कामातुर
बेटी सी पावन प्रतिमा की लाज बचा ना पाएंगे , बेटी तुम खुद स्वयं संभालो हम तो बचा ना पाएंगे
गंगा जल …………………………………………………………………………………………………… 1
चिर परिचित जीवन पाने की जब से हुई प्रतीक्षा पूरी , ह्रदय हीन पाषाण वनों की तीतिक्षा से रही ना दूरी ,
स्वयं बोझ हो खुद जीवन का बचपन से ही ज्ञान हो गया ,बोझ उठा के चलना कैसे यह उसको परिज्ञान हो गया
इसी ज्ञान का लाभ उठा के सब तुझको तडफाएंगे , बेटी तुम खुद स्वयं संभालो………………………… 2
रही अगर जो अभी भरोसे चीर बचा ना पाओगी , मोहन की दुविधा में खुद को खड़ा अकेला पाओगी
दुष्ट दनुज दुह्शाशन दल का काल तुम्हें ही बनना है , हार सके शकुनी मामा वो चाल तुम्हें ही चलना है
चीर गंवाने के जलसे के बाद ही मोहन आयेंगे , बेटी तुम खुद ………………………………………… 3
मीरां को विष प्याला , सीता को अग्नि उपहार मिली ,मन में थे सपने मलिका के पर उसको दीवार मिली
माँ दुर्गा का रूप धरा जब से महिषाशुर हार गये , रूप धरा रण चंडी का तब लाखों दानव पार गए
माँ काली का क्रोध मिटाने शिव ही खुद आ जायेंगे . बेटी तुम खुद ………………………………………….4