बेटीयां,
बेटे अब सास की सोचें, मॅा बाप की सोचे बेटी,
जमीन जायदाद के मोह में बेटे,
पर बझंर रहती खेती,।
नित इस बात पे खटपट होती,
सोच नयी यह बिकसित हो रही।
मात पिता कुछ बेबस हुए ऐसे,
जीवन जीयें वह अब कैसे,।
सास बहु में है बर्चस्व की लडाई,
मां बाप को अब बांटते भाई,।
थे सुखी जब बिन ब्याये थे,
मात पिता मे ही समाये थे।
दुख दर्द का पुरा मलाल था,
नहीं तब कोई बवाल था,
बडे छोटे का पुरा खयाल था।
जब से घर में बहु है आई,
सोचते हैं क्या आफत बुलाई।
खून का रिस्ता तोड चले,
मां बाप को छोड चले।
अब आते नहीं बिन बुलावे,
आकर करते हैं छलावे।
कम तनखा में नहीं होता गुजारा,
बढ रहा है खर्च हमारा।
नन्हे बच्चों का सवाल है,
अच्छी शिक्षा का माया जाल है,
बुढों का भी अजीब जंजाल है।
बुढे अब अपनी किस्मत को कोसें,
अपने अरमानो को मसोसें।
पल पल अपनी मौत को पुकारें,
अपने जीवन को धिक्कारें,
जीयें तो अब किसके सहारे,
हो गये जब अपने ही पराये।
क्या क्या अरमानो से बुना घरोंदा,
कल के लिये था आज को झोका।
बेटी को था माना धन पराया,
बेटों को लेकर था इतराया।
कल के लिये बुने थे सपने,
कल के पराये आज हैं अपने।
कल के अपने हुए आज पराये,
कल भी क्या क्या दिन दिखलाये।