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16 Sep 2021 · 1 min read

बेटी(कविता)

ई जिनगी नइ मिले कखनो
बलि चढ़ेलौ तँ हमरे सभ जनम मे,मां
कोख मे बेटी मारि देबै तुअ,की बेटा चाही
कि जिनगी तोर हमर कारण पहाड़ बनत
मुह किया देखिहे हमर,बेटा कें देखिहे
मा तुअ नानी मायक जग केर सुन्नर बेटी
हमरो ऐही सुन्रर जिनगी मे आबे दे मा
तिल क ताड़ नहियेँ बनाबू कखनो,की हम बेटा नैय
बलि चढ़ेलौ तँ हमरे सभ जनम मे मा
कोख में बेटी मारि देबै तुअ,की बेटा चाही

बेटी एक टाका घसकायैब,बेटा रुपा आठ
फिरो किया कहता केओ,बेटा नीक सदा
बाबूक पाग भाषा सम्मान हमर हसुलि
फेरो किया कुपात्र हमही मरि सदिखन
कनी आबे दे,दुनियाक घर आगन देखितौ कने
बाबू मा आ भायक स्नेह दुलार पबितौ कने
छोटछीन पोखर माछ जकाँ घरे मे रहितौ हम
जँ नहि रहितै विश्वास तोरा,हम बंधन मे रहितौ
हम कखनो नहि गूडिया ,नहि खेलौना मांगब
फेरो किया नाक पर अंगुलि फेरि रहल छै
कोख में बेटी मारि देबै तुअ,की बेटा चाही

मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य

Language: Maithili
9 Likes · 6 Comments · 331 Views
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