बेटियां
देखो कैसे बढ़ रहा, जग में अत्यचार।
कही लुट रही आबरु, कहीं मिटे परिवार।।
सुनो बहनों तुम्हीं को अब,यहाँ कुछ कर दिखाना है
उठा हथियार हाथों में, दरिंदो को मिटाना है।
लुट रही आबरू है आज बेटी की जमाने में
बनोअब आत्मरक्षक खुद,तुम्हें भुजदंड उठाना है।
बने हैं मूकदर्शक सब, लुट रही देश की बेटी।
बचाता है नहीं कोई, यही इंसानियत मेटी।
हुए गद्दार नेता हैं, बनाते झूठ वो बातें
दबाते जुर्म ले रिश्वत , सुरक्षित है नहीं बेटी।
लगाकर आँख पर पट्टी, खड़ी है न्याय की देवी।
कचहरी कोर्ट के चक्कर, निकलते साक्ष्य^फरेबी।
चली जो न्याय लेने को, मिली तारीख फिर से है,
बिके रिश्वत में हैं देखो, सभी कानून के सेवी।
मशाले हाथ में लेके, धरा को पाक तुम कर दो।
मिले बहंसी दरिंदे तो, जलाकर राख तुम कर दो।
नहीं अब हार मानो तुम, मिटा दो जुर्म दुनियां से,
दिखे पथ भ्रष्ट नेता तो, मिटा कर खाक तुम कर दो।
सुरक्षित हैं नहीं बेटी , जहां देखो वहां हत्या।
कहीं है भ्रूण हत्या तो, कहीं है प्यार में हत्या।
कहीं पर अपहरण बेटी, कहीं मरती दहेजों पर,
नहीं है न्याय बेटी को, यहाँ होती है नित हत्या।
अभिनव मिश्र”अदम्य