“बेटियां”
वो फ़िक्र भी,वो फ़ख़्र भी
सीधी सी बात में घुला तर्क सी,
वो हकीकत भी,ख्वाब भी
घर के खर्चे से बचा हुआ हिसाब सी,
कभी नीम की निम्बोली
तो कभी मिश्री की डली
वो खुदा के दर पर
फैली हुई झोली सी,
वो जुनून सी,वो सुकून भी
हज़ारों के नोट पर
सिक्के का “शगुन” सी,
वो चूल्हे की आग
चौके की छुरी
वो सुबह का सूरज
शाम सिंदूरी सी,
वो जलती मशाल
जंग की तलवार,
नफरतों का मुद्दा,
तो बेपनाह प्यार भी
वो मंदिर की पूजा,
मस्ज़िद की अज़ान
शांति का पुलिंदा और
सर्वधर्म सम्मान सी,
वो तकती निगाहों की
कुशल-मंगल चिट्ठिया
वो मेरी बिटिया
वो तेरी “बिटिया”
“इंदु रिंकी वर्मा”