बेटियां भ्रूण है
बेटियां भ्रूण हैं
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बेटियां
भ्रूण हैं
चौखट हैं
पर्दा हैं
ख़ानदान हैं
इज्जत हैं
दहेज हैं
और
अल्ट्रासाउंड में दिखने वाला धब्बा.
फिर
आकाश में उड़ने वाली कल्पना, सुनीता कौन है ?
बेटियां भ्रूण हैं
आंगन की चहचहाहट है
भाई के रक्षाबंधन की डोर हैं
सुबह शाम पिता की दवाई हैं
मां की जिम्मेदारी
और फुर्सत भी .
बेटियां भ्रूण है
कुम्हार है
तरासती हैं
और
सृजित करती हैं हमे हरपल .
बेटियां भ्रूण है
ए सूरज ,चांद, सितारे और कायनात को अपने में समेटे कोख है
बेटियां भ्रूण हैं
इनसे ही हम हैं
फिर
क्यों बेटियां भ्रूण हैं.
©शैलेंद्र कुमार भाटिया