बेटियाँ
मान हूँ अभिमान हूँ अपने घर की शान हूँ मैं
बाबा के आँगन में थिरकती हुई मुस्कान हूँ
भाग्य नहीं सौभाग्य से मिला वरदान हूँ
जनक के द्वारा किया सबसे बड़ा कन्यादान हूँ
बाबुल कि बगिया की भोली चिड़िया हूँ
अपने पिता की मैं तो इक गुड़िया हूँ
हर पल खुशियाँ संजोती ऐसी घडियां हूँ
रोशन करती जहां को ऐसी फुलझड़िया हूँ
पल भर में जो कर देते मुझको पराई
क्या कर सके मेरे प्यार की भरपाई
हर एक बन्धन जोड़े रखने वाली
मैं ही तो हूँ दो घर रोशन करने वाली