* बेटियाँ *
बेटियाँ तो हैं कली सी डाल से इनको न तोड़ ।
हैं बहुत नाजुक सभी ये भावनायें मत मरोड़ ।।
सृष्टि की आधार हैं ये वासना को दे बिसार ।
मात्र पाना चाहती हैं ये सभी का बस दुलार ।।1
—
दो कुलों की शान हैं ये बाप- माँ की हैं गुमान ।
ये निभातीं बात अपनी तोड़ती ये हैं न आन ।।
हैं सभी लक्ष्मी स्वरूपा राधिका सीता समान ।
अंश हैं ये मात की रे हैं धरा सी धैर्यवान ।।2
—
फागुनी सी ये बहारें श्रावणी सी हैं फुहार ।
वासना के तीर पर करते चुनरिया तार-तार ।।
देख कर के आह निकले पर सभी हैं आज मौन ।
मान इनका जो बढ़ाये है बताओ कृष्ण कौन ?
—
-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
(सभी रचनाएँ शुद्ध गीता छंद में )
***