बेटियाँ
सुताएं,आवाज कोयल की, दिलों का राग हैं |
आज पितु की सुबह, कल ससुराल प्रिय अनुराग हैं|
लड़कियाँ जागीं जहाँ पर, हँसे, वह आँगन सदा |
लगे ऐसा, बेटियाँ , हँसता हुआ शुभ बाग हैं|
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता