बेटियाँ
घर की फुलवारी का
सबसे सुंदर फूल होती बेटियाँ
अपनेपन का आँगन होती बेटियाँ
मिश्री सी मीठी डली होती बेटियाँ
घर की ताजा सुबह होती बेटियाँ
दूज का पतला चाँद होती बेटियाँ
पतझड़ में गुलमोहर होती बेटियाँ
सारे रिश्तों की जननी होती है बेटियाँ
किन्तु क्यों आज भी……..
पिता के ललाट की
पहली चिंता रेखा भी होती बेटियाँ
सिर का पहला सफेद बाल भी होती बेटियाँ
चेहरे की पहली झुर्रि भी होती बेटियाँ
नजर के चश्मे का पहला पाव नम्बर
अधेड़ अवस्था का पहला आँसू
भी होती है बेटियाँ
खुशी और चिंता का
मिलाजुला झरना होती है बेटियाँ।।
डॉ प्रियदशिर्नी अग्निहोत्री