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25 Jan 2017 · 2 min read

बेटियाँ

बेटियाँ
होती हैं प्यारी
बेटों से भी !!
गर्भ से बाहर नहीं
आना चाहतीं
जकड़ लेतीं माँ को
अभी और कुछ दिन!!!
पल भी जातीं
आसानी से
कहते पुराने
बताते सियाने
सख़्त जान उन्हें !
देवी
फुलवाडी कली
घर की रोंनके!!
इज़्ज़त बचाने के लिए गर्भ में ही
मारते उन्हें दीवाने ?
उन्हें भी बेटों के साँचों में ढालने लगे हम ~
मुक़ाबला हर बात में भाई से करते
लाड़ में
बार बार दोहराते
किसी बात में कम नहीं है भाई से !!
पढ़ना खेलना खाना या पीना
सभी !!!
बेटे भी भर जाते हीन भावना से कहीं !
नहीं पाते ख़ुद को
उतना होशियार !!
रोज़गार छीनती हैं
हर क्षेत्र में
करतीं दो दो हाथ !!
काँधे मिलाते
स्त्रिततव जाता हार
पुरुषों जैसा हो जाता व्यवहार !!
फिर ढूँढते
कोमलांगी पत्नी
स्नेह से ओत प्रोत हृदय
बदलते सरोकार !!
वही पिता जो कहते थे माँ से पढ़ने दो ~~
आराम करने दो
ढूँढते बहू में
खाना बनाना
घर सम्भालना
सेवा सुश्रा के संस्कार!!
त्याग
समन्वय
सहिष्णुता!!
हृदय उदार
बनाएँगे बेटियों का तो ही
समाज में
स्त्री का बढ़ेगा मान!
घर बसेंगे
होगा पति पत्नी में गर प्यार !!
पैसा कमाने की मशीन
होटल सा घर
सुख सुविधाओं का भंडार
ही नहीं सब कुछ !!
जोड़े दिलों को
करे न्योछावर दीन दुनिया
गृहस्थी के लिए
तब माँ को करते बच्चे याद !!!
बदलना तो है वक़्त के साथ
मगर दिशा तो तय हमें ही करनी!!!
स्वार्थ
नहीं बनता है सम्बन्धों का आधार !!
छोटे मोबाइल छोटी गाड़ी साधारण कपड़े
भी सुख देते
माँ बाप बच्चे बुज़ुर्ग जो घर में
बेठें एक साथ !!!
शाम को ग्लास की जगह
जो आरती के लियें
उठें हाथ !!!
कुछ सोचें
किस तरह का चाहिए हमें समाज !!
बिखरते घर
अकेले वृध
माँ पिता की छत्र छाया का
नन्हों को आभाव !!
ऊँच पदों पे ढेरों कमातीं
परिचरिकाओं पे निरभर आधुनिका
घरों में घमासान
पहले पुरुषों को करना होगा तैयार
सजी सँवरी बीबी
को साथ चलाना
पार्टी मनाना
संतान
को क्या दें घर का पैमाना
सोचना होगा
क्रांति कहाँ लानी
क्या क़ीमत चुकानि ???
हारने लगी क़लम भी
बेटियों के छीने जाएँगे क्या अधिकार ??
सब मिलकर देखें
बात करें
पश्चिमी सभ्यता का अंधा अनुकरण
क्या नहीं यह भेड़ चाल ?
बीमार अस्वस्थ अशान्त ख़ाली सपाट घर
चाहिए या
खिलखिलाते
किलकारियाँ गुंजाते
आशीर्वाद पाते
बसते घर संसार !!
सोचने को कह रही सिर्फ़
हमें चूड़ियों भरी कलाइयो से
व्यंजन परोसती
लौरी गाती
नख़रे उठाती
बाट जोहती
माँ चाहिए
या अस्त व्यस्त घर छोड़ती
भागती दोड़ती
खीजी सी !!
फ़ैसल लेना इतना आसान नहीं
ऊँची फ़ीसें
महँगाई
जीवन चर्या की तमाम आवश्यकताएँ
ज़रूरी है सभी कमाएँ
मगर
घर घर में फैला अकेलापन
समस्याएँ
कोई उपाय सुझाएँ ⁉️⁉️

सु मन ?

517 Views
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