बेटियाँ
बेटी को जन्म देकर भी माँ
माँ ही रहती है
बेटी के जन्म पर अक्सर
माँ की रुस्वाई होती है।
एक बेटी क्या कम थी
जो दूसरी को पैदा किया
सुन कर ताने लोगों के
माँ की जग हँसाई होती है।
मार देती कोख में
किसी को क्या पता चलता
गर्दिश-ए-पुरुष अदालत में
माँ की रूलाई होती है।
धैर्य ,संयम, साहस से
बेटी का पालन किया
बड़ी होकर वही बेटी
माँ की पराई होती है।
बेटे नहीं बेटियाँ भी
करती है रोशन चिराग
बेटे के रूठने पर वही
माँ की सहाई होती है।
अहमियत कम न समझो
वे भी हैं बेटों से बढ़कर
“पूर्णिमा “जहाँ न हो बेटियाँ
वहाँ माँ की तन्हाई होती है ।
डॉ०पूर्णिमा राय,
शिक्षिका एवं लेखिका
अमृतसर(पंजाब)