बेटियाँ
विधा -छंदमुक्त
बिटिया
हम बिटिया दिवस मनाते हैं ,
बिटिया की रक्षा का जिम्मेदार कोई नहीं ,
डूब मरे हम चुल्लू भर पानी में ,
नवरात्रि में पूजन कन्या का करते हैं,
उस पर अत्याचार क्यूँ स्वीकार हमें
पत्ता पत्ता रोता है,
ञबूढ़ा बरगद भी सिसकता है
ह्रदय में है ख़ून उबलता,
और ज्वालामुखी धधकता है।
निर्भया अनामिका और मनीषा ,
कितनों की कुर्बानी होगी माँ,
तब जाकर इस धरा पर तुम,
खड्ग खप्पर लेकर आओगी माँ,
मजबूरी के हाथों देश ,
खून के आँसू पीता है
ह्रदय में है ख़ून उबलता,
और ज्वालामुखी धधकता है।
बैठ सबको पुरुषार्थ दिखाते,
राजनीति के दंगल में,
कैसा नराधम कृत्य किया,
उनको भी निर्दोष ठहराते,
रोएं गलियां,रोते खलिहान,
विश्वास कहीं दरकता है
हृदय में है ख़ून उबलता है ,
और ज्वालामुखी धधकता है।
यह कैसी व्यवस्था है हावी ,
बैठी हुई दुम हिलाती है ,
क्या आचं तुम्हारे घर ना पहुंचेगी ,
ऐसे तो अनजान नहीं ,
यह आंच नहीं तुम तक पहुँची ,
सारा देश ही जलता है।
हृदय में है ख़ून उबलता ,
और ज्वालामुखी धधकता है।
अब चूड़ी गहनों के संग
कराटे जूडो का ग्यान ज़रूरी है
खोखले वादे,शोर मचाते नारे,
अब स्वयं ही दुर्गा बनना है,
सरकारी तंत्र के गलियारों में,
संविधान हाथ मल रोता है।
हृदय में है ख़ून उबलता ,
और ज्वालामुखी धधकता है।
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित