बेटियाँ
बेटियां
बेटियां आज भी ये हुनर ले के चलती हैं
लाख गम हो मगर वो मुस्कुरा के चलती हैं
कब समझता जहां ये आँसुओं की कीमत है
बस रहे मौन कितने जख्म ले के चलती है
प्यार की बात माँ की न कभी भूली होगी
दूर रह कर वही बस याद ले के चलती है
आँसुओं को छिपाकर ही सदा हंसती है वो
ये हुनर बेटियां ही आज ले के चलती हैं
इस जहां के सभी फर्ज वो निभाये जाती है
कौन उस के सिवा ये राह ले के चलती है
जीवनी का चक्र मुमकिन कहां उन के बिन है
कोख मे ही भला क्यों जान दे के चलती है
प्रदीप भट्ट ,दिल्ली