बेटियाँ
पायलों की खनक घर में बरकत की गवाही देती है।
दर्द पर मानो मरहम से उनकी आवाज सुनाई देती है।
घर के कतरे कतरे को घर बनाती है ये।
हर सांझ को सबकी हक में दिया जलाती है ये।
दायरों की बंदिश इज्जत का मसला होता है।
बेटी वह दिया है जो दूसरों के हक में जला होता है।
सुबह की शबनम सी शांत होती है ये।
शहर की भीड़भाड़ में हिमालय सा एकांत होती है ये।
बहुतो के लिए तो शतरंज की शह और मात होती है बस।
बेटियां पूजी जाती हैं लेकिन 9 दिन की बात होती है बस।
परिंदों से बेफिक्र होती हैं ये।
बात हो हक़ की तो बेजिक्र होती हैं ये।
आज के दौर में भविष्य का कल होती हैं ये।
उन पर उंगली मत उठाओ पाकीजा गंगाजल होती हैं ये।
उनकी हर बात पर बंदिश क्यों लगाते हो।
उनके हर फैसले को गलत क्यों ठहराते हो।
बड़े बातों से नहीं बड़े दिल से पल्ला करती है बेटियां।
मगर बदकिस्मती से ससुराल में आज भी जला करती हैं बेटियां
पैरों पर खड़ा होना सीख लेंगी वो।
हक को छिनेगी न दया की भीख लेंगी वे।
अपने भाइयों की हक में दुआ मांगती है ये।
बड़ी उम्मीद से उनको राखी बांधती है ये।
कर दो बराबर हर बात पर इन चिड़ियों को
खुला छोड़ दो आसमां में इन तितलियों को।
बेटियां पूरी सोच होती हैं अब सिर्फ मन नहीं होती।
बेटी बेटी होती है कोई पराया धन नहीं होती।
बेटीयो को ना मारो तुम्हारी ही परछाई होती है ।
जैसे बेटे हैं वैसी बेटियां भी भगवान की बनाई होती हैं।