बेटा ही दगा देता है
हर आशिक अपने प्यार को यूं ही बता देता है।
जो न करे ऐतवार उसको भी जता देता है।।
अब तलक हमने मोहब्बत में वफा भी बेवफा पाई।
जैसे वक्त आने पर चूहा बिल्ली को डरा देता है।।
बहुत गौर से देखा है हमने इस जहां के प्यार को।
जहां खुद के पेट से पैदा “बेटा ही दगा देता है”।।
ऐ “देव” गर बुजुर्गों की दुआऐं साथ हों अपने।
तो दुश्मन भी पीछे से हमें अपना बता देता है।।
ऐ खुदा वो मोहब्बत ही क्या जिसमें तन्हा का ऐहसास हो।
क्योंकि तन्हा का दर्द ही तो हमें जिन्दा जला देता है।।
— कवि देवेन्द्र शर्मा
( बरेली )
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