बेझिझक करते रहो तुम इश्क़ का व्यापार भी
हमसफ़र हैं दरमियाँ क्यूँ ये हया दीवार भी
कर रहे हो इश्क का इकरार भी इंकार भी
इश्क़ में क्या देखते हो तुम नफा नुकसान अब
बेझिझक करते रहो तुम इश्क़ का व्यापार भी
रात-दिन, हर पल, हमेशा, तेरा मेरा साथ हो
अब नहीं आये हमारे इश्क़ का इतवार भी
हार बैठा दिल वो दुश्मन, इश्क़ बाजी जीत ली
की रकाबत*, अब बना वो, इश्क़ का हकदार भी
बिक ही जाओगे कभी तुम जो रखोगे कीमतें
आजकल लगने लगे हैं, इश्क के बाज़ार भी
भीड़ में भी देख लो मैं गमरसीदा** हूँ खड़ा
याद तेरी बन गई खल्वत*** की हिस्सेदार भी
जिंदगी की धूप में जलकर जिये हम क्यूँ सदा
हैं अगर ये चार दिन, मिल के मना त्यौहार भी
मुश्किलों का तुम ‘अदिति’ यूँ हँस के करना सामना
सीख देती है नई अब जीत भी हर हार भी
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
भोपाल
*रकाबत- दुश्मनी
**गमरसीदा- तन्हा
***खल्वत-तन्हाई