बेजुबान
देख बेजुबान जानवर को
आज मन में ख्याल आया।
कितना तेजी से बदल रहा है समय,
आज जुबान वाले से तो अच्छा,
ये बेज़ुबान वाले होते जा रहे हैं।
हम इंसान सिर्फ कहने के लिए
अब इंसान रह गये हैं,
वर्ना हम तो जानवर से भी
नीचे गिरते जा रहे हैं।
कल तक प्रेम, वफादारी
निभाने वाला इंसान,
आज यह सब भूल रहा है।
ये बेजुबान जानवर अब हमें
इसका पाठ पढ़ा रहा हैं।
कल तक हम जानवरों को
हिंसक कहा करते थे।
इसकी हिंसक प्रवृति को
लेकर हमेशा डरा करते थे।
पर आज जब हमनें अपने तरफ देखा,
तो हमें एहसास हुआ कि हमलोग
अब जानवर से भी ज्यादा हिंसक हो गये हैं।
यह बेजुबान तो पेट भरने के लिए
हिंसा किया करता है,
और हमलोग तो बातों -बातों में
हिंसा पर उतर आते है।
अब हमें अपनो से भी अपनो का,
खून बहाने मे कोई गुरेज नहीं है।
क्योंकि आजकल हमलोग अपने स्वार्थ
को सबसे ऊपर रखने लगे हैं।
कैसा हो रहा है इंसान की प्रवृत्ति,
हमें समझ में नही आ रहा है।
जिस अतीत को छोड़कर
हम इंसान बने थे।
आज फिर क्यों उसी
अतीत की तरफ लौट रहा है।
ऐसा लग रहा है कि जानवर
अब इंसान होते जा रहे हैं,
और हम इंसान जानवर बनने
के तरफ अपना कदम तेजी से बढ़ा रहे हैं।
~अनामिका