बेचैन हो रहा हूं।
ऐसा क्या है उसमें जो उसकी दूरी से इतना बेचैन हो रहा हूं मैं |
उसके बगैर सांसे क्यों ऐसे अपनी रुक-रुक कर ले रहा हूं मैं ||1||
वक्त की हर दहलीज पर उसकी आने की आहट सुनाई देती है |
उसे क्या पता किस कदर टुकड़ों-टुकड़ों में जिंदगी जी रहा हूं मैं ||2||
उसके आने की खबर से मेरे घर की दीवारें महका करती थी |
उनको भी एहसास है उसके जाने पर, रंग उनका उतरता हुआ देख रहा हूं मैं ||3||
उसके संग जो बीता वक्त हैं मैरा काफी है मेरे जीनें के लिए |
इक-इक करके उसके ख्वाबों को जिन्दगी में जी रहा हूं है मैं ||4||
दिख ना जाये कहीं मेरे जख्मों के निशाँ उसको ऐ साादिक |
उससे मिलने से पहले हर दर्द को इसी के अन्दर सी रहा हूं मैं ||5||
वह याद ना आये सोने के वक्त बिस्तर मे हमको ताज |
देर शाम से इस मयखानें में जमकर जाम पे जाम पी रहा हूं मैं ||6||
ताज मोहम्मद
लखनऊ