बेचैन कागज
दर्द मेरा कागज पर
थोक के भाव बिकता रहा
लेकिन मैं बेचैन था
रात भर लिखता रहा
छू रहे थे तब सभी
बुलंदियां आसमान की
मैं सितारों के बीच
चांद की तरह छीपता रहा
दरकत होता तो कब का
टूट कर गिर गया होता
मैं था नाजुक डाली जो
सबके आगे झुकता रहा
बदला यहां लोगों ने रंग
अपने अपने लिबास से
रंग मेरा भी निखरा पर
मैं मेहंदी की तरह पिस्ता रहा
जिनको जल्दी थी वह
बढ़ चले मंजिल की ओर
मैं वहीं पर समुंदर से राज
गहराई के सीखता रहा
मैं था आसमान जिसने
सितारों को चमकने दिया
सितारों ने आसमान से दगा कर
प्रियतमा धरती को चमका दिया