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26 Nov 2021 · 1 min read

बेचैनी

बेचैनी जब हद से पार होती
बेखुदी मे ख्याल नही रहता,
कब ढला सूरज या रात होती
खुद मे खुद को ढूँढता रहता।

सूखे गले मे अटके अल्फाज
जुबां लड़खड़ाती रहती,
ओंठ कुछ इस तरह चिपके
खामोशी बोलती रहती।

नींद का अब ये आलम है
मनाने पे भी रूठी रहती,
झपकी लगे कभी यूं ही
तेरी आवाज जगाती रहती।

खुश हुए कि आ गये तुम
आंख खुली तो खुली रहती,
होते हो तुम न तुम्हारा साया
बेदर्द बेबसी बनी रहती।

चलो जाओ बेईमान हो तुम
पहले से कह नही सकती,
वादा न था कि आओगे
फिर भी उम्मीद बनी रहती।

स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर 9044134297

Language: Hindi
6 Likes · 10 Comments · 520 Views
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