…..बेचारा पुरुष….
नोट- सभी लड़कियां एक जैसी नही होती।मैने अपने आस पास कई लड़कियों को मायका और ससुराल दोनों को बर्वाद करते देखा है।
नारी रोए हर कोई देखे,
दिखे दर्द न पुरुषों का।
अब नारी पुरषों पर भारी
कोई दुख सुने न पुरषों का ।
आधुनिकता की होड़ में देखो,
सारी मर्यादा लांघ रही ।
संस्कारों को ताक पे रखकर,
वेर्शर्मी में लीन हुई।
रिश्ते इन्हे बोझ हैं लगते,
रोक टोक इन्हे पसन्द नही।
ये जे कहे बस वही सही है ,
किसी की बात इन्हे सुननी ही नही।
कुछ जगह गलत हैं मात पिता,
जो सर पे चढा कर रखते हैं।
बराबरी के चक्कर में,
सही गलत इन्हे समझाते नही ।
कहीं गलत औलादें है जो ,
मात पिता की सुनती नही।
दिखावे में चक्कर में पड़कर,
किसी की इज्जत करती नही।
इन सब में पिसते हैं लड़के बेचारे,
जिनका कोई दोष नही ।
घुटते हैं वो अन्दर ही अन्दर ,
किसी से कुछ कह सकते नही।
पुरुष बेचारे जान दे रहे
इनके अत्याचारों से ।
अब नारी पुरूषों पे भारी ,
कोई दुख सुने न पुरषों का
समझ नही आता नारी,
कैसे इतना गिर सकती है।
क्या हुआ आज की नारी को,
सही गलत सब भूल रही ।
बात न उनकी गर मानों तो,
सारी हदें पार कर देती हैं
अपने अधिकारों का वह ,
दुरुपयोग अब करती है।
झुठे केश में उलझाकर ।
अपनों पे जुल्म ढहाती हैं।
झूठे झुठे केश बनाकर ,
जीना दुर्भर कर देना।
किसी के घर का चिराग बुझा कर ,
फिर वेर्शर्मी से जीनाl
उसके बाद भी हिस्सा देखो,
मांग रही घरवालों से।
दोनो कुल का नाम डुबोकर,
अभिमान में जीना ।
औरत तो त्याग की देवी है,
वह कैसे निष्ठुर हो सकती।
समझ नही आता मुझको ,
नारी कैसे इतना गिर सकती है।
रुबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ