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13 Oct 2024 · 1 min read

बेघर एक “परिंदा” है..!

यूँ ही आना जाना है,
दुनिया एक झमेला है।

सुख दुख जीवन के पहलू,
धूप कहीं, कहीं छाया है।

खलिहानों में उम्र गई,
कहते लोग निठल्ला है।

कारिस्तानी बेटे की,
बाप खड़ा शर्मिंदा है।

दो दो हाथ करूं कैसे..?
सिक्का मेरा खोटा है।

ताड़ रहा था, जेल हुई,
पर बेचारा अंधा है।

आज़ादी की कीमत क्या,
लथपथ देख तिरंगा है।

नेता जी का याराना,
चोर, पुलिस, घोटाला है।

जो जितने शफ़्फ़ाफ़ दिखें,
मन उतना ही काला है।

लायक कौन भरोसे के,
हर चहरे पर पर्दा है।

देख मुझे तुम हंसते हो,
हंस लो वक़्त तुम्हारा है।

रिश्ते नाते क्या जाने,
बेघर एक “परिंदा” है।

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