Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Apr 2020 · 3 min read

बेइंतहा प्यार

डीएम ऑफिस से आने के बाद से ही दीपमाला बहुत दुखी और परेशान थी। वह आईने के सामने खड़ी होकर अपने ढलते यौवन और मुरझाए सौंदर्य को देखकर बेतहाशा रोए जा रही थी। ऐसा लग रहा था मानो वह आईने से कह रही हो कि तुम भी लोगों की तरह झूठे हो। आज तक मुझे सिर्फ झूठ दिखाते रहे। कभी सच देखने ही नहीं दिया।
उसने रात का खाना भी नहीं खाया। पति और दोनों बच्चे खाना खाकर सो चुके थे। लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी।

दीपमाला की शादी को पंद्रह वर्ष हो चुके थे। पति और दोनों बच्चों के साथ उसका जीवन अब तक सुखी पूर्वक ही व्यतीत हुआ था।

जी भर कर रो लेने के बाद वह अपने बेडरूम में आई। वहां उसने सोए हुए अपने पति को गौर से देखा। आज पहली बार उसका पति उसे काला-कलूटा, बेडौल शरीर वाला कुरूप व्यक्ति दिख रहा था। दीपमाला की बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

रुद्रव्रत। यही नाम था उसका। जिसे आज डीएम चेंबर में देखने के बाद से दीपमाला को सिर्फ सच दिख रहा था।
एक समय था, जब दीपमाला रूद्रव्रत से बेइंतहा मोहब्बत करती थी। रूद्रव्रत से उसकी पहली मुलाकात आज से क़रीब अठारह साल पहले कॉलेज में हुई थी। मुस्कुराता चेहरा, गठीला बदन, शरारती आंखें। कॉलेज की लड़कियां उसे सलमान कहकर पुकारती थीं। उसे देखते ही दीपमाला को पहली नज़र वाला प्यार हो गया था। यूं तो कॉलेज की सभी लड़कियां अपने सलमान की ऐश्वर्या बनने की कोशिश में लगी हुई थीं। लेकिन दीपमाला बाज़ी मार गई।
तीन वर्षों तक दीपमाला रूद्रव्रत के प्रेम की डोर से बंधी रही। लेकिन, कॉलेज की पढ़ाई खत्म होते-होते उसे लगने लगा कि सुखी जीवन सिर्फ प्रेम से प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने खुद को इस प्रेम रूपी डोर से मुक्त कर लिया और एक धनाढ्य व्यवसाई से शादी कर ली।

वो कहते हैं ना, कि अतीत से कभी पीछा नहीं छूटता। आज दीपमाला के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

अगले हफ्ते दीपमाला के बड़े बेटे का जन्मदिन था और वह इस बार जिले की नई जिलाधिकारी को भी इस खुशी के मौक़े पर आमंत्रित करना चाहती थी। इसलिए उन्हें आमंत्रित करने के लिए वह अपने पति के संग डीएम ऑफिस गई थी। कुछ देर अतिथि कक्ष में इंतज़ार करने के बाद जब वह डीएम के चेंबर में दाखिल हुई तो अप्सरा जैसी ख़ूबसूरत जिलाधिकारी को देखकर वह दंग रह गई। उसने सोचा- शायद ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ इसी को कहते हैं। अपने आने का कारण दीपमाला डीएम साहिबा से बता ही रही थी तभी एक शख़्स क़रीब पांच साल के एक बच्चे के साथ बिना इज़ाज़त डीएम के चेंबर में दाख़िल हो गया। जिसे देखते ही डीएम साहिबा अपनी कुर्सी से उठकर खड़ी हो गईं और उस बच्चे को अपनी गोद में उठा लिया।

वह व्यक्ति डीएम साहिबा से मुख़ातिब होते हुए बोला – “आर्जव आज बहुत ज़िद करने लगा कि मम्मी से मिलना है। इसलिए लाना पड़ा।”

“कोई बात नहीं।” डीएम साहिबा ने कहा।

“चलो आर्जव, अब चलते हैं। मम्मी को अपना काम करने दो।”

“ओके पापा, लेट्स गो। बाय मम्मी।” यह कहते हुए वह बच्चा उस व्यक्ति के साथ वहां से चला गया।

उस शख़्स को, बच्चे को और डीएम साहिबा को देखने के बाद दीपमाला के दिमाग ने काम करना लगभग बंद कर दिया था।

वह शख़्स और कोई नहीं बल्कि रुद्रव्रत था। आज भी वह हू-ब-हू वैसा ही दिखता था, जैसा दीपमाला ने उसे कॉलेज में पहली बार देखा था।

खुद को संभालते हुए दीपमाला ने डीएम साहिबा की ओर मुख़ातिब होते हुए कहा – “अगर आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं ?”

‘हां, पूछिए।” डीएम साहिबा ने कहा।

“आपके पति क्या करते हैं ?”

“मुझसे बेइंतहा प्यार।” डीएम साहिबा ने मुस्कुराते हुए कहा।

✍️ आलोक कौशिक

संक्षिप्त परिचय:-

नाम- आलोक कौशिक
शिक्षा- स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य)
पेशा- पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन
साहित्यिक कृतियां- प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित
पता:- मनीषा मैन्शन, जिला- बेगूसराय, राज्य- बिहार, 851101,
अणुडाक- devraajkaushik1989@gmail.com
चलभाष संख्या- 8292043472

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 601 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
वो मेरी पाज़ेब की झंकार से बीमार है
वो मेरी पाज़ेब की झंकार से बीमार है
Meenakshi Masoom
हर पाँच बरस के बाद
हर पाँच बरस के बाद
Johnny Ahmed 'क़ैस'
की है निगाहे - नाज़ ने दिल पे हया की चोट
की है निगाहे - नाज़ ने दिल पे हया की चोट
Sarfaraz Ahmed Aasee
चुप रहना भी तो एक हल है।
चुप रहना भी तो एक हल है।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
जब तुम
जब तुम
Dr.Priya Soni Khare
अहंकार
अहंकार
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
जरूरत दोस्त की,समय पर होती है ।
जरूरत दोस्त की,समय पर होती है ।
Rajesh vyas
भाईचारे का प्रतीक पर्व: लोहड़ी
भाईचारे का प्रतीक पर्व: लोहड़ी
कवि रमेशराज
Hallucination Of This Night
Hallucination Of This Night
Manisha Manjari
*नुक्कड़ की चाय*
*नुक्कड़ की चाय*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
हमारे मां-बाप की ये अंतिम पीढ़ी है,जिनके संग परिवार की असली
हमारे मां-बाप की ये अंतिम पीढ़ी है,जिनके संग परिवार की असली
पूर्वार्थ
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
यदि कोई व्यक्ति कोयला के खदान में घुसे एवं बिना कुछ छुए वापस
Dr.Deepak Kumar
प्रतियोगिता के जमाने में ,
प्रतियोगिता के जमाने में ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
"मजदूर"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरे चेहरे की मुस्कान है मेरी पहचान,
तेरे चेहरे की मुस्कान है मेरी पहचान,
Kanchan Alok Malu
24/235. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/235. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
फूल और तुम
फूल और तुम
Sidhant Sharma
#हार्दिक_बधाई
#हार्दिक_बधाई
*प्रणय*
टूटा हुआ ख़्वाब हूॅ॑ मैं
टूटा हुआ ख़्वाब हूॅ॑ मैं
VINOD CHAUHAN
अपने माथे पर थोड़ा सा सिकन रखना दोस्तों,
अपने माथे पर थोड़ा सा सिकन रखना दोस्तों,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
याद हम बनके
याद हम बनके
Dr fauzia Naseem shad
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
कुंडलिया
कुंडलिया
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
मेरी मां।
मेरी मां।
Taj Mohammad
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
*मिठाई का मतलब (हास्य व्यंग्य)*
*मिठाई का मतलब (हास्य व्यंग्य)*
Ravi Prakash
वीरों की धरती......
वीरों की धरती......
रेवा राम बांधे
कुर्सी
कुर्सी
Bodhisatva kastooriya
आप नौसेखिए ही रहेंगे
आप नौसेखिए ही रहेंगे
Lakhan Yadav
बस एक कदम दूर थे
बस एक कदम दूर थे
'अशांत' शेखर
Loading...