बेंटी को उलाहना
बेंटी किसे दूँ उलाहना
बता दोषी कौन है।
बिगडे़ हालात ससुराल में,
फिर भी तू मौन है।
कल तक मिलकर रहें,
संयुक्त परिवार मे,
तेरे जाने क्या हुआ,
बिखर गयें तकरार में।
बेंटी तूने पढ़ा होमसाइंस,
पाक कला का लिया ज्ञान,
पर तेरे हाथ का न भाया,
किसी को भोजन पकवान।
बेंटी तेरी वकालात,
घर ही नहीं आयी काम।
सुलह समझोतों में,
रही पूरी तरह नाकाम।
इंजीनियर की पढा़ई में,
पाया खिताब उत्कृट।
पर नफरत की दीवार को
क्यो नही कर पायी भृष्ट।
तूझें पढा़ लिखा कर,
कुशल डाँक्टर बनाया।
अपने परिजनों के दिल का,
आपरेशन करते नहीं आया।
दोषी तू या तेरा ससुराल,
अवश्य कहीं खोट है,
वजह जो भी जैसी हो,
पर दिलों पर चोट है।
तेरी विदाई पर जशन,
सबने मिल मनायी खुशियाँ,
बधू नहीं बेंटी मानेगें,
कहते चलायी फुलझडियाँ।
पर यह क्या तुझे,
आग से जला दिया।
आत्महत्या का कलंक,
तेरे ही नाम कर दिया।
किसे दूँ दोष,
दोषी कौन है।
सुनता ही अब कौन,
सारा समाज मौन है।