बूढ़ी माई के बाल
भूरी आंखें, पिचके गाल
उलझे उलझे बेतरतीब बाल।
वह छोटा सा लड़का,
मेरे पास आकर
रोज़ दार्शनिक अंदाज़ में कहता
लो आंटी जी
बूढ़ी माई के लाल बाल
कल हरे, आज नए कमाल।
मैं दस रुपये उसके हाथ मे थमा देती।
वो बोहनी के रुपये माथे से लगा लेता
किसी बुजुर्ग की तरह।
और ‘थैंक यू ‘मेरी तरफ बढ़ाता
चल देता चिल्लाता—-
बूढ़ी माई के बाल
कल हरे, आज नए कमाल।
टेस्टी टेस्टी शुगर बाल
आओ ,खाओ ,करो धमाल।
और मैं हर रोज़ की तरह
ठिठकी सोचती रहती
‘कि क्या बेचता है ये बच्चा’?
बूढ़ी माई के बाल ??
हसरतें??
या अपना बचपन??
****धीरजा शर्मा ****