बूढ़ी मां
बूढ़ी मां
जब सांसे मेरी चलती थी
तो तेरा रवैया कुछ और था
एक रोटी के टुकड़े के खातिर
तूने दिया मुझे झंझोड़ था।
एक गिलास पानी पिलाने के कारण
तूने कितना गुस्सा दिखाया था
टूटे हुए गिलास में बेटा तू पानी लेकर आया था पहुंचते-पहुंचते गिलास मुझ तक
आधा पानी तू ने गिराया था ।
आज सांसे मेरी थम गई है
और आंखें तेरी नम गई हैं
जीते जी चाहे ना ही सही
मरने पर बहकर आई है
जिसको जीवन भर मैं तरसती रही
वो तोहफ़ा मौत मेरी अब लाई है।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी