बूंद
अम्बर पर छाए बादलों की कोख से
एक बूंद रिस कर धरती पर आ गयी।
किस्मत से सीप का मुंह खुला था
गिरते ही सीप के मुंह में समा गयी।।
जमीन पर गिरती गर तो मिट्टी हो जाती
ना जाने कितने पैरों से कुचले जाने को।
सीप में गिरी तो मोती बन गयी किस्मत से
किसी तरुणी के गले की शोभा बढ़ाने को।।
वीर कुमार जैन ‘अकेला’