बूँदों के कायदे…
शहर मे बारिश की बूंदें,
अजब क़ायदे दिखाती हैं,
जो पसीने से तरबतर हैं,
ये उनको ही भिगाती है….
उनके छप्पर मे बरसकर,
फिर छज्जे मे चली आती है,
जो मजबूरियों मे सोते हैं,
ये उनको बहा ले जाती है…
वहीं कुछ वो भी हैं जो,
सूखे ही बने रहकर,
बूंदों का मज़ा लेते हैं,
बैठ कर आशियानों मे,
चाय के घूंट पिया करते हैं…
उनके घर मे यही बूंदे,
इधर उधर से बह जाती हैं,
छोड़ कर दहलीज़ उनकी ,
‘बसेरा’ गरीब का बहाती हैं…
इनके गिरने के यहाँ ,
पैमाने अलग अलग हैं,
इनके क़ायदों की ज़द मे,
यहाँ ‘घर’भी अलग अलग हैं….
© विवेक’वारिद’ *