बुढ़ापे के जवान जज्बात
ऐ दोस्त! उम्र मेरी साठ साल पार हो गयी पर दिल मेरा जवां रहा,
आँखों पर चश्मा जरूर चढ़ा पर हाल ऐ दिल आँखों से बयां रहा।
वक़्त के साथ झुर्रियाँ पड़ी चेहरे पर मगर मुस्कुराहट कातिल रही,
सब बदल गया पर अंदाज वो ही रहा जिससे रौशन महफ़िल रही।
आशिक मिजाजी रग रग में दौड़ती है पर दिल उसी पर फ़िदा रहा।
यूँ तो हजारों चेहरे रहे आँखों में पर उसका चेहरा सबसे जुदा रहा।
जब जब जिक्र हुआ उसके नाम का, मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गई,
देख उसके नाम की मुस्कान मेरे लबों पर ज़माने की बोहैं चढ़ गई।
सुलक्षणा मत कुरेदो बुढ़ापे की राख को दिल के शोले दहकते मिलेंगे,
सुनकर मेरा किस्सा ऐ मोहब्बत कुछ मुरझायेगें चेहरे कुछ खिलेंगे।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत