बुढ़ापा में खो नहीं अपना आपा
बुढ़ापे में खोओ नहीं अपना आपा ,
नहीं तो घर में पड़ जायेगा स्यापा |
बुढ़ापे में बन गयी एक सहेली ,
नाम था उसका चमन चमेली
नाम था मेरा कवि अलबेला
मै कहने लगा उसे अलबेली
वह मेरे से मिलने आने लगी
मै भी उससे मिलने जाने लगा
बुढ़ापे को कर दिया हमने अलविदा
वह मेरे पर फ़िदा मै उसपे फ़िदा
सब जगह हमारे चर्चे होने लगे
लोग आकर हमसे पूछने लगे
बुढ़ापे में यह कया हो रहा है
बुढ़ापे में जवानी का रंग चढ़ रहा है
बुढ़ापे में गर्ल फ्रेंड बनाने लगे हो
क्यों तुम अब इतने इतराने लगे हो
मै बोला ,
तुम सब लोग हमे गलत समझते हो
तुम हमे औरो की तरह समझते हो
हम तो अपना बुढ़ापा काट रहे है
बस एक दूजे का सहारा बन रहे है
जब घर में हमे नहीं कोई पूछता
तभी तो बुढ़ापे में सहारा ढूंढते
अगर घर में मिल जाता सहारा
फिर क्यों हम ढूढ़ते कोई सहारा
घर में माँ बाप का बटवारा हो गया है
हम दोनों को अलग अलग कर दिया है
मै बड़े बेटे के पास रहता हूँ
वह छोटे बेटे के पास रहती है
हम केवल एक दूजे मिलते है
किसी का हम क्या छीन लेते है ,