बुला रहा है मुझे रोज़ आसमा से कौन
बुला रहा है मुझे रोज़ आसमा से कौन
हटा रहा है मुझे बीच दास्ताँ से कौन
फ़ूल गुमसुम हैंपरिंदे चहकना भूल गए
चला गया है ये चुपचाप गुलिस्ताँ से कौन
छोड़ कर घर के सब आराम निकल जाती हूँ
खींचता है मुझे हर रोज़ अलसबा से कौन
यहाँ हर दोस्त मिल रहा है तो अपनी ख़ातिर
करेगा प्यार यहाँ मेरी वफ़ा से कौन
कभी तो छोड़ कर दुनिया के गमआ जाया कर
हमारे बाद पुकारेगा इस सदा से कौन
हमसफ़र था मगर हम मुश्किलों में तनहा थे
अब सफ़र फिर से तय करेगा इब्तिदा से कौन
आँधियों को मेरा चुप बैठना मंज़ूर नहीं
सदायें मुझको दे रहा है अब हवा से कौन
इसी दुनिया को समझना पड़ेगा अपना अब
आएगा प्यार करने दूसरी दुनिया से कौन
कंचन