✍️बुलडोझर✍️
.✍️बुलडोझर✍️
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मैं कैसे मान लूँ
तुम्हारे इल्तिज़ा फर्मान को ।
आप शक के नज़र से
देख रहे हो मेरे ईमान को ।
किसका ज़ुर्म है
एक दफ़ा बता तो दो ।
क़त्ल साबित हो तो
फिर ताउम्र सज़ा दो ।
तुम्ही हुक्मराँ तुम्हारी तासिर
और तुम्ही ख़ुदा हो…।
भला इस मिट्टी से परे
हम कैसे जुदा हो….।
इन आबोहवां में महेक है
जमी पे गिरे लहु के कतरे की ।
आझादी के लिए वो इँसा सूली चढ़ा था
हमें हि बतला रहे हो निशानी खतरे की ।
हमने भी मुक्कमल
हक़ अदा किया नमक का ।
हम से भी दुनिया में बुलंद है सितारा
मेरे वतन के चमक का ।
मानो या ना मानो
ये सच्चाई है कोई किस्सा नहीं ।
तुम संज़ीदा कैसे कह सकते हो
हम रूह ऐ वतन का हिस्सा नहीं ।
इतनी नफ़रत कैसे घूल गयी तेरे जहँन में
ये कैसा रिमेक है ये तो दबीं फाइलों का ट्रीझर है!
हाँ कोई साज़िश चली है सत्ता के गलियारों में?
उन बस्तियों पे चला वो किसका बुलडोझर है?
हाँ बुलडोझर से याद आया
मुझे वो कच्चा मकान जो ढह गया ।
किसीका टुटा फूटा छत अरमानो का
फुट फुट आँसू बनकर जो बह गया ।
क्या तुम्हे मालूम है कहाँ तक
फ़ैली है गरीबी की सीमा?
कभी तो गरीबी रेखा पर
चला दो बुलडोझर धीमा ।
न जाने कितनो को है
अपने सुनहरे भविष्य कि खोज ?
बेकारी की समस्या पर भी
चला दो बुलडोझर किसी रोज ।
कितने प्यासे कितने भूखे नंगे
बेबस हालात के है शिकार
पर इन बुनियादी बदलावो के लिए
आपका बुलडोझर है बेकार?
चल रहा है धर्म का आडंबर और
नक़ाबपोश दरिंदे काशी काबा में ।
हैवानियत से भरे है वो नापाक इरादें
क्या चलेगा बुलडोझर किसी नेक सबां में..?
सच कहूँ यार ये बुलडोझर तो केवल एक यंत्र है ।
सत्ता के लिए इंसान का ये नया विकसित तंत्र है ।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
25/05/2022