बुरा है वक़्त लेकिन गम नहीं है
बुरा है वक़्त लेकिन गम नहीं है
रहा भी एक सा मौसम नहीं है
कलम करती नहीं आवाज बिल्कुल
मगर विस्फोट करती कम नहीं है
बदलते वक़्त में बदले हैं सारे
यहाँ कोई मेरा हमदम नहीं है
कुचल देता है बेरहमी से कलियाँ
वो तो हैवान है आदम नहीं है
बनानी जीत है हर हार अपनी
मनाना बैठ कर मातम नहीं है
भरेगा वक़्त भी कुछ जख्म तेरे
तो क्या ,गर पास में मरहम नहीं है
बदल सकती है तेरी भी कहानी
इरादों में तेरे कम दम नहीं है
रहो खुश ‘अर्चना’ बस सोचकर ये
मिला है जो वो भी कुछ कम नहीं है
08-07-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद