बुरा है इश्क जालिम
गजल
हँसाता है रुलाता है रुलाता है हँसाता है।
बुरा है इश्क ये जालिम सभी को आजमाता है।।
नहीं वो बात करता है जहाँ के सामने मुझसे।
अकेले में मगर वो गीत मेरे गुनगुनाता है।।
किया गुमराह जनता को था’ जिसने नाम पर सच के।
वतन में जीत पर सच की वही अब तिलमिलाता है।।
हिकारत की निगाहों से जिसे देखा सभी ने था।
अँधेरी रात में जुगनू वही अब जगमगाता है।।
मेरे लब मुस्कुराते देखकर होती जलन उसको।
मेरी नाकामियों पर वो बहुत ही खिलखिलाता है।।
प्रदीप कुमार