बुधिया काका
घर के भीतर चल रहे समाचार
और समाचार में जो बताया जा रहा था
बुधिया काका साफ-साफ सुन भी रहे थे
और समझ भी।
खिन्न थे वो आज की निति से
और राजनीति से भी।
जिन्हें महान और मार्ग दर्शक मानते आए
उन्हें गालियाँ दी जाती हैं
बुधिया और उन जैसै और भी
जिन बातों को बुराइयों में तौलते थे।
उन बातों पर पुरजोर समर्थन मिल रहा है।
देश को क्षेत्र और जाति में बंटता देख दुखी थे बुधिया काका
उन्होंने देखा है वो जलजला बंटवारे का
और उसके बाद का भी
इसलिए कांप जाती है उनकी रुह
लरजनें लगती है उनकी ज़बान
कभी कोसते हैं इन छुट-पुट नेताओं को तो कभी
अपने आपको
कि ये देखने के लिए जिंदा क्यों हैं।