बुद्ध या विनाश
हथियारों से
पटी हुई यह
युद्धों की दुनिया
मिट जाएगी
बनी नहीं जो
बुद्धों की दुनिया…
(1)
पागलपन की
होड़ मची है
कैसी अंधी
दौड़ लगी है
सड़े-गले पर
आंख गड़ाए
गिद्धों की दुनिया
मिट जाएगी
बनी नहीं जो
बुद्धों की दुनिया…
(2)
सारे लोग हैं
भांग चढ़ाए
कौन किसको
राह दिखाए
मूर्खों के सिर
पर चढ़ी हुई
धूर्तों की दुनिया
मिट जाएगी
बनी नहीं जो
बुद्धों की दुनिया…
(3)
सत्ता और पूंजी के
मेल से
सदियों से जारी है
खेल ये
धर्मों का धंधा
करते हुए
लुच्चों की दुनिया
मिट जाएगी
बनी नहीं जो
बुद्धों की दुनिया….
(४)
बुद्धं शरणं गच्छामि
धम्मं शरणं गच्छामि
संघं शरणं गच्छामि
अप्प दीपो भव…
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Shekhar Chandra Mitra
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