बुद्ध का आलोक
हुई मानवता तार-तार जब
प्रकृति ने आलोक फैला दिया।
अज्ञान से डूबे, इस जग में
ज्ञान का दीप जला दिया
शुद्धोधन-भार्या महामाया के घर
सिद्धार्थ सा जलज खिला दिया
निशाकाल में डूबती लुम्बिनी
में,अरुण प्रकाश फैला दिया
हुई मानवता तार-तार जब
प्रकृति ने आलोक फैला दिया।
धीर-वीर-गम्भीर था, वह
राजयोग परित्याग किया
सप्तदृश्य से द्रवीभूत, वह
सत्य का मार्ग दिखा दिया
भोग-विलास और वैभव छोड़
जग को ज्ञान दिला दिया
बोधिवृक्ष की छाया पाकर
बुद्ध ने बुद्धि बता दिया
हुई मानवता तार-तार जब
प्रकृति ने आलोक फैला दिया।
पंचशील और त्रिरत्न के संग
अष्टांगिक उपदेश बता दिया
मानवता हो सारे जग में
बुद्ध ने बौद्ध धम्म बना दिया
सब जीवों से प्रेम करो
अहिंसा का पाठ पढ़ा दिया
कुशीनगर में आकर भन्ते
ने,अमर निर्वाण प्राप्त किया
हुई मानवता तार-तार जब
प्रकृति ने आलोक फैला दिया।
-सुनील कुमार